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विष्णु प्रभाकर

“क्या एकतरफा प्रेम कम शक्तिशाली होता है? क्या वह अपने-आप में मधुर नहीं होता? क्या सफलता ही उसके होने का प्रमाण है? मन ही मन किसी के लिए अपने को विसर्जित नहीं किया जा सकता है क्या? इस वेदना को स्नेह कहो, प्रेम कहो, आयु का दोष कहो, पर इसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। उसमें प्रेम की भूख अपार है, लकिन तृप्ति का कहीं कोई साधन नहीं है। यह अतृप्ति दर्द के रूप में कुण्डली मारकर उसके अंतर में रम गई और उसकी अभिव्यक्ति हुई 'देवदास' और ‘बड़ी दीदी' आदि रचनाओं में।”

Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
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