आवारा मसीहा Quotes

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आवारा मसीहा आवारा मसीहा by विष्णु प्रभाकर
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आवारा मसीहा Quotes Showing 1-30 of 176
“बहुत-से दुखों के बीच से होकर यह साधना धीरे-धीरे आगे बड़ी है। किसी दिन यह नहीं सोचा था कि मैं साहित्यिक हो सकूंगा या किसी दिन मेरी कोई पुस्तक छपेगी।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“पुस्तक के भीतर मनुष्य के दुख और वेदना का विवरण है। समस्या भी शायद है, किन्तु समाधान नहीं। यह काम दूसरों का है। मैं केवल कहानी लेखक हूं।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“इलाचन्द्र जोशी से उन्होंने कहा था, "कुत्ता प्यार में भी क्रोध का भाव जताता हुआ भूंकता है। इस सत्य से केवल वे ही लोग परिचित होते हैं जो कुत्ते को प्यार कर चुके हैं और उसका प्यार पा चुके हैं...... कुत्ता आदमी को आदमी से अधिक पहचानता है, मेरी यह बात तुम गांठ बांध लो।”
विष्णु प्रभाकर, आवारा मसीहा
“उसके क्षुब्ध चित्त ने कृपण का दिया धन नहीं, उसके दाता के प्रसन्न हृदय का सार्थकता का दान चाहा है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“सत्य के अंग-प्रत्यंग, जड़ और शाखा आदि नहीं हैं। सत्य सम्पूर्ण वस्तु है और सत्य ही सत्य का शेष है। और इस चाहने के भीतर ही मानव जाति के सब प्रकार के और सर्वोत्तम लक्ष्य की परिणति विद्यमान”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“अहिंसा की कीमत पर मैं भारत की स्वाधीनता लेना स्वीकार न करूंगा, मतलब यह कि भारत बिना अहिंसा के अपनी स्वाधीनता नहीं ग्रहण करेगा”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“महात्माजी का लक्ष्य सत्याग्रह है, भारत की स्वाधीनता या स्वराज्य का लाभ इस लक्ष्य का एक अंग हो सकता है, किन्तु मूल लक्ष्य नहीं”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“मेरे लड़के और आपमें बहुत अन्तर है। एक लड़का गया तो दूसरा हो सकता है, किन्तु एक शरत्‌चन्द्र के जाने पर दूसरा नहीं हो सकता।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“शरत्‌चन्द्र ने विधानचन्द्र राय से कहा, “आपरेशन यदि होना ही है तो आप करेंगे। यदि मरूंगा तो आपके हाथों से।” हंसकर विधानचन्द्र राय ने उत्तर दिया, "लेट जाओ, काम पूरा करके ही जाऊंगा।” और फिर घर के कोने में रखी इस्पात की सुन्दर कुल्हाड़ी उठा लाये। बोले, "मै तैयार हू।” सब ठहाका मारकर हंस पड़े।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“मनुष्य पर जब संकट आता है तो वह बुरे संस्कारों का दास बन जाता है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“अच्छा होने के लिए लगता हे वही एक उपाय है, मन को निरुद्वेग कर दीजिए। तब देखेगें कि कैसे आप ठीक हो गये हैं।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“परिचित डाक्टर ने आकर प्रणाम किया। पूछा, "आप कैसे हैं दादा?" शरत्‌चन्द्र बोले, “तुम्हीं बताओ कैसा लगता हूं?" “पहले से अच्छे दिखाई देते हैं।” तुम डाक्टर जाति के हो, मेरा यही विश्वास था। आज यह विश्वास और भी दृढ हो गया।” डाक्टर ने कहा, “इतना बड़ा सर्टिफिकेट क्यों दे रहे हैं आप?” एक क्षण चुप रहकर शरत् बाबू फिर बोले, “डाक्टर, तुम बहुत अच्छी तरह जानते हो कि मैं ठीक नहीं हूं। यह भी जानते हो कि मुझसे ऐसी बात नहीं कही जानी चाहिए। इसीलिए तुमको बड़ा मानता हूं।” कई क्षण इसी तरह की बातें करते रहे।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“कभी किसी की व्यक्तिगत आलोचना न करना और दूसरे, जो कुछ भी लिखो वह तुम्हारे अनुभव के बाहर की चीज न हो।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जाने कितने पथ-घाटों की धूल फांकी तथाकथित पाप भी किये पर ईमानदारी, साहस और करुणा को कभी नहीं छोड़ा और अन्त में इन्हीं गुणों के कारण महान बन गया।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जो सौंदर्य का उपासक है, वह प्रकृति का भी उपासक है। मनोरम और भयानक, प्रकृति के इन दोनों रूपों का, और स्वयं भगवान का भी। क्योंकि सर्वोत्तम सौंदर्य ही तो भगवान है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जीर्णगृह में कितने भूतों ने आश्रय लिया है, आरामकुर्सी पर लेटे-लेटे यही बात सोचता हूं और कहता हूं - दयामय देर कितनी है?.”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“उनके प्रभावहीन व्यक्तित्व में एक खुरदरापन था, परन्तु उसके नीचे मानवीय सम्वेदना का जो स्रोत बहता था उसने उनके असंख्य प्रशंसक पैदा कर दिये थे।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“अद्‌भुत विरोधाभास था उनके स्वभाव में। एक ओर वैरागी का मन, दूसरी ओर ऐसी विनोदप्रियता जो उजड्‌डपन की सीमा तक पहुंच गई थी।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जो छोटा काम करता है अर्थात् मन को मैला करता है, वह क्या अपनी कृति के माध्यम से दूसरे के मन को इतना प्रभावित कर सकता है?”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जो अपराध एक आदमी को मिट्टी में मिला देता हे, उसी अपराध में दूसरा आदमी स्वच्छन्दता से पार हो जाता है। इसीलिए सब विधिनिषेध सभी को एक डोरी में नहीं बांध सकते।.”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“मनुष्य के रहस्यमय अन्धकूपों में उतरने का मार्ग दिखाने वाली प्रकाश-किरण।.....जीवन-संध्या में क्या सचमुच उन्हें इस बात का दुख था कि उन्होंने आवारगी का जीवन बिताया,”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“मन में यह सोच रहा था कि कांग्रेस के जो पण्डे या महन्त हैं, उनकी मंत्री होने की कैसी उत्कट आकांक्षा है, कैसी पदलोलुपता है, अथवा निमूहता के आवरण में उसे छिपाने के लिए कितने कौशल से काम लेते हैं!”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“अपनी विशाल परिधि के भीतर अपने माधुर्य से सब कुछ को ही अपना कर रखा है। इसी से किसी ने आज भी इसका सत्य निर्देश नहीं पाया कि साहित्य क्या है, रसवस्तु क्या है?”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जो मुक्त है वह नहीं चलता, चल नहीं सकता। वह जड़ है। इस आत्मकेन्द्रित-परविमुख जड़ बुद्धि के परिवेश ने मुसलमान को अपनी वास भूमि में परवासी बना रखा है। भारत की मिट्टी के रस से रसायित होकर भी उसका मन जैसे भीगता नहीं।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“दुनिया-भर के लोग मिलकर मुसलमानों की शिक्षा की व्यवस्था न करें तो इनकी आंखें किसी दिन खुलेंगी या नहीं, इसमें सन्देह है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“कोई भी धर्म हो, उसके कट्टरपन को लेकर गर्व करने के बराबर मनुष्य के लिए ऐसी लज्जा की बात, इतनी बड़ी बर्बरता और दूसरी नहीं है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“धर्म जब देश से भी ऊंचा हो जाता है, तब भी विपत्ति घटित होती है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“देशसेवा जब तक धर्म का रूप नहीं ले लेती, तब तक उसमें थोड़ी-सी धोखाधड़ी रह जाती है,”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“ताल्स्ताय जीवन-भर अन्याय के विरुद्ध और अपने विरुद्ध लड़ते रहे, पर अन्त में उन्होंने कहा, “आप कल्पना नहीं कर सकते कि जैसे-जैसे मनुष्य बुढ़ापे अर्थात् मृत्यु के पास आता है वैसे-वैसे उसका जीवन बदलने लगता है। अब मुझे सबसे अच्छा यही लगता है कि ज़ार हो या भिखारी हो, सबके साथ स्नेह का व्यवहार करूं।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“खाना-पीना हुआ पर कोई जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। तब उसने नौकर को पुकारकर कहा, देखो, यह चाबी लो और लोहे का संदूक खोलकर पिताजी का वसीयतनामा ले आओ।’ "बेचारे मेहमान अवाक्। नौकर ने अचकचाकर कहा, ‘वसीयतनामा?’ "गृहस्वामी बोले, ‘हां, हां, देखना है कि बाबा ने यह मकान मुझको दिया है या इन सबको।” उससे बाद जो प्राणों को उन्मुक्त कर देने वाला अट्टहास उठा उसकी कल्पना ही की जा सकती”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा

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