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विष्णु प्रभाकर विष्णु प्रभाकर > Quotes

 

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“बहुत-से दुखों के बीच से होकर यह साधना धीरे-धीरे आगे बड़ी है। किसी दिन यह नहीं सोचा था कि मैं साहित्यिक हो सकूंगा या किसी दिन मेरी कोई पुस्तक छपेगी।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“पुस्तक के भीतर मनुष्य के दुख और वेदना का विवरण है। समस्या भी शायद है, किन्तु समाधान नहीं। यह काम दूसरों का है। मैं केवल कहानी लेखक हूं।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“महात्माजी की बात और है । अहिंसा उनके अन्तर का ज्वलन्त विश्वास है, उनका आदर्श है । इससे बढ़कर ध्रुव और कोई नीति उनके जीवन में नहीं है । देश की स्वाधीनता से भी अहिंसा उनके लिए बड़ी है”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“क्या दैहिक शुद्धि इतना बड़ा गुण है कि जो पत्नी पति को जेल जाने से बचाने के लिए भी गहने नहीं देती, रुपये नहीं निकालती, वह भी सती है ? उसके सतीत्व का क्या मूल्य हे, मेरी समझ में नहीं आता ?”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“दूसरे की कल्पना के चित्र में पाठक अपने मन को इस तरह आंखों से देखना चाहता है,”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“मन्दिर के जो जितना पास होता है भगवान से उतना ही दूर होता है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“क्या एकतरफा प्रेम कम शक्तिशाली होता है? क्या वह अपने-आप में मधुर नहीं होता? क्या सफलता ही उसके होने का प्रमाण है? मन ही मन किसी के लिए अपने को विसर्जित नहीं किया जा सकता है क्या? इस वेदना को स्नेह कहो, प्रेम कहो, आयु का दोष कहो, पर इसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता। उसमें प्रेम की भूख अपार है, लकिन तृप्ति का कहीं कोई साधन नहीं है। यह अतृप्ति दर्द के रूप में कुण्डली मारकर उसके अंतर में रम गई और उसकी अभिव्यक्ति हुई 'देवदास' और ‘बड़ी दीदी' आदि रचनाओं में।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“खाना-पीना हुआ पर कोई जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। तब उसने नौकर को पुकारकर कहा, देखो, यह चाबी लो और लोहे का संदूक खोलकर पिताजी का वसीयतनामा ले आओ।’ "बेचारे मेहमान अवाक्। नौकर ने अचकचाकर कहा, ‘वसीयतनामा?’ "गृहस्वामी बोले, ‘हां, हां, देखना है कि बाबा ने यह मकान मुझको दिया है या इन सबको।” उससे बाद जो प्राणों को उन्मुक्त कर देने वाला अट्टहास उठा उसकी कल्पना ही की जा सकती”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“विधवा होना ही नारी-जीवन की चरम हानि और सधवा होना ही सार्थक्ता है, इन दोनों में कोई भी सत्य नहीं है। तब से उसे समग्र चित्त से साहित्य में नियोजित कर दिया।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“कोई भी धर्म हो, उसके कट्टरपन को लेकर गर्व करने के बराबर मनुष्य के लिए ऐसी लज्जा की बात, इतनी बड़ी बर्बरता और दूसरी नहीं है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“तुमसे बहुत कुछ पाया है। सुन्दर, सबल, सर्वसिद्धिदायिनी भाषा तुमने दी है, विचित्र छन्दों में बंधा काव्य दिया है, अनुरूप साहित्य दिया है, जगत् को बंगला भाषा और भाव-सम्पदा का श्रेष्ठ परिचय दिया है, और सबसे बड़ा दान तुम्हारा यह है कि तुमने हमारे मन को बड़ा बना दिया है। तुम्हारी सृष्टि का सूक्ष्म विचार करना मेरे बूते से बाहर है”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“प्रेमी के लिए ही प्रेमी को त्याग करने का साहस दिया। चन्द्रमुखी कह सकी, “रूप का मोह तुम लोगों की अपेक्षा हम लोगों में बहुत ही कम होता हे, इसलिए तुम लोगों की तरह हम लोग उन्मत्त नहीं हो जाते।” लेकिन शरत् की यह निविड़ सहानुभूति मात्र मौखिक ही नहीं थी।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“लोग कहते हैं कि मैं पतिताओं का समर्थन करता हूं। समर्थन मैं नहीं करता केवल उनका अपमान करने को ही मेरा मन नहीं चाहता। मैं कहता हूं कि वे भी मनुष्य हैं।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“राधा का शतवर्ष व्यापी विरह वैष्णवों का प्राण है,”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“परिस्थितियों से विवश होकर मनुष्य ऐसा कुछ कर बैठता है जो तत्कालीन धर्म और समाज की दृष्टि से बुरा हो तो मनुष्य सच़मुच बुरा नहीं हो जाता।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“रथ-यात्रा के उत्सव में हठात् सब-नर-नारी यह देखते हैं, महाकाल का रथ अचल है । मानवसमाज की सबसे बड़ी दुर्गति काल की यही गतिहीनता है । मनुष्य-मनुष्य मे जो संबंध-बन्धन देश-देश युग-युग में प्रसारित हो गये हैं, वे ही बंधन उस रथ को खींचने वाली रस्सी हैं । उन बंधनों में अनेक ग्रंथियां पड़ जाने पर मानव संबंध असत्य और असमान हो जाते हैं । उससे रथ नही चलता । इन्हीं संबंधों का असत्य इतने समय तक जिनको विशेष रूप से पीड़ित करता है, अपमानित करता है, सुधन के श्रेष्ठ अधिकार से वंचित करता है, आज महाकाल अपने रथ के वहन के रूप मे उनका ही आहान कर रहा है । उनका असम्मान नष्ट होने पर ही, संबंधों का असाम्य दूर होने पर ही रथ सामने की ओर चलेगा ।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जिस धर्म ने नारी को बैठा रखा है संसार के समस्त अध:पतन के मूल में, उस धर्म के संबंध में जिन लोगों के मन में यह विश्वास है कि सच्चा धर्म यही हे उन लोगों से यह कभी हो ही नहीं सकता कि वे नारी जाति को श्रद्धा की दृष्टि से देखें।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“मुझे जो बातें कहनी चाहिए थीं कह नहीं सका था । वह मेरी अक्षमता है, अनिच्छा कभी नहीं”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“नैतिक अवनति. के कारण मैं कितना गिर चुका हूं, यह मापकर देखने की शिक्षा मुझे नहीं मिली। किन्तु दयामाया और प्यार के स्वर्णांग में एक तिल भी दाग नहीं लगेगा,”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“लेखकों ने बहुतों की प्रशंसा पाई है, किन्तु सार्वजनिक हृदय का ऐसा आतिथ्य नहीं पाया।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“नारी का मूल्य 'धर्म का मूल्य' ईश्वर का मूल्य, ‘नशे का मूल्य, ‘झूठ का मूल्य', 'आत्मा का मूल्य', पुरुष का मूल्य ‘साहित्य का मूल्य‘समाज का मूल्य, 'अधर्म का मूल्य' वेश्या का मूल्य' और सत्य का मूल्य”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“देवदास' की चन्द्रमुखी के अन्तस्तल में सोया देवता चरित्रहीन पर सरलप्राण *******देवदास की निष्कपट आत्मा के स्पर्श से जाग उठा था। शरत्-साहित्य की यही विशेषता है,”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“नारी-जीवन की सार्थकता कहां है? जिसे लोग आत्मा कहते हैं वह क्या स्त्रियों के शरीर में नहीं होती? वे क्या इस संसार में केवल पुरुषों की सेवादासी बनने के लिए ही आई हें।4 'शेष”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“मानव-चरित्र की अतलस्पर्शी अभिज्ञता ने निखिल नारी चित्र ख्रई निगूढ़ प्रकृति का गुप्ततम पता पा लिया है। हे नारी-चरित्र के परम रहस्यज्ञाता, हम लोग तुम्हारी वन्दना करती हैं। “त्रय”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“जिस चीज को सत्य समझा था उसी को निष्कपट रूप से प्रकट किया था। वह सत्य चिरंतन और शाश्वत है या नहीं, यह मेरे सोचने की बात नहीं है । अगर यह बात मिथ्या भी हो जाती है, तो मैं किसी से लड़ने नहीं जाऊंगा।.”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“साहस का वरण और निर्भीकता का उपार्जन करना एक चीज नहीं हैं। एक देह की है दूसरी मन की। देह की शक्ति और कौशल बढ़ने से अपेक्षाकृत दुर्बल और कौशलहीन को हराया जा सकता है किन्तु निर्भयता की साधना से शक्तिशाली को परास्त किया जा सकता है। संसार में कोई उसे बाधा नहीं दे सकता है। वह अजेय होता है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“यश ही मिलता और उसको लेकर किसी के मन में कोई विरोध न होता तो उस यश का गौरव न रहता। तुम्हारी प्रतिष्ठा जितनी बढ़ेगी उतना ही दुख भी बढ़ेगा। इसके लिए मन को पक्का कर रखो.....।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“परिचित डाक्टर ने आकर प्रणाम किया। पूछा, "आप कैसे हैं दादा?" शरत्‌चन्द्र बोले, “तुम्हीं बताओ कैसा लगता हूं?" “पहले से अच्छे दिखाई देते हैं।” तुम डाक्टर जाति के हो, मेरा यही विश्वास था। आज यह विश्वास और भी दृढ हो गया।” डाक्टर ने कहा, “इतना बड़ा सर्टिफिकेट क्यों दे रहे हैं आप?” एक क्षण चुप रहकर शरत् बाबू फिर बोले, “डाक्टर, तुम बहुत अच्छी तरह जानते हो कि मैं ठीक नहीं हूं। यह भी जानते हो कि मुझसे ऐसी बात नहीं कही जानी चाहिए। इसीलिए तुमको बड़ा मानता हूं।” कई क्षण इसी तरह की बातें करते रहे।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“त्रुटि-स्थलन, अपराध, अधर्म ही मनुष्य का सब कुछ नहीं है। उसके बीच जो वस्तु वास्तव में मनुष्य है, जिसे आत्मा भी क्का जा सकता है, वह उसके सब अभावों, सब अपराधों से बरी है। अपनी साहित्य-रचना में मैं इसका अपमान नहीं करूंगा, लेकिन बहुतों ने इसे मेरा अपराध मान लिया है।”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा
“देश के लिए जो काम करते हैं, उन सब पर मैं श्रद्धा रखता हूं । भले ही वे हिंसात्मक क्रांतिकारी हों या अहिंसात्मक सत्याग्रही । मेरे लिए वे दानों ही समान श्रद्धा के पात्र हैं”
Vishnu Prabhakar, आवारा मसीहा

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