त्रिभुवन नारायण
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“बेटा सुनो, हर क्रांतिकारी-मार्क्सवादी बेटे के पीछे एक ठीक-ठाक पूँजीवादी बाप होता है जिसके भेजे पैसे पर फुटानी और क्रांति चलता है। जिस दिन ये महीना का भेजा पैसा बंद हो जाएगा न, उसी दिन क्रांति का तंबू जरूरत और अभाव की आँधी में उड़ जाएगा।
“दुनिया में समर्थ ही जिंदा नहीं रहता, कमजोर भी जिंदा रहता है। सभ्यता का अर्थ ही यही है कि कमजोर की भी रक्षा हो सके। आयुर्वेद, चिकित्सा शास्त्र आदि की आवश्यकता इसीलिए है कि दुर्बल भी जीवित रह सके।सबल तो अपने आप जीवित रह लेगा । पुलिस भी इसलिए है कि दुर्बल की रक्षा हो। मत्स्य न्याय ना रहे, इसलिए राज्य की स्थापना है। समर्थ दुर्बल को समाप्त न करे, इसलिए हम नियम व समाज बनाते हैं।
अतः जीवन का, समाज का आधार संघर्ष नहीं, सहयोग है। प्रकृति भी सहयोग के आधार पर चलती है ।”
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अतः जीवन का, समाज का आधार संघर्ष नहीं, सहयोग है। प्रकृति भी सहयोग के आधार पर चलती है ।”
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त्रिभुवन’s 2025 Year in Books
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