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जयशंकर प्रसाद
“विजया! आकाश के सुंदर नक्षत्र आंखों से केवल देखे जाते हैं, वे कुसुम-कोमल हैं कि वज्र-कठोर -- कौन कह सकता है।”
जयशंकर प्रसाद, स्कंदगुप्त

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