स्कंदगुप्त Quotes

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स्कंदगुप्त स्कंदगुप्त by जयशंकर प्रसाद
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स्कंदगुप्त Quotes Showing 1-6 of 6
“चक्र! ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिये रात-दिन लड़ना पड़े!”
जयशंकर प्रसाद, स्कंदगुप्त
“विजया! आकाश के सुंदर नक्षत्र आंखों से केवल देखे जाते हैं, वे कुसुम-कोमल हैं कि वज्र-कठोर -- कौन कह सकता है।”
जयशंकर प्रसाद, स्कंदगुप्त
“जो अपने कर्मों को ईश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।”
जयशंकर प्रसाद, स्कंदगुप्त
“परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है, निश्चेष्ट शांति मरण है।”
जयशंकर प्रसाद, स्कंदगुप्त
“अंधकार का आलोक से, असत् का सत् से, जड़ का चेतन से और बाह्य जगत् का अंतर्जगत् से संबंध कौन कराती है? कविता ही न!”
जयशंकर प्रसाद, स्कंदगुप्त
“जिसके हाथ में बल नहीं, उसका अधिकार ही कैसा?और यदि मांगकर मिल भी जाय, तो शांति की रक्षा कौन करेगा?”
जयशंकर प्रसाद, स्कंदगुप्त