खिलखिलाते ख़्वाब सताते बहुत हैं
दुनिया के रिवाजों से भटकाते बहुत हैं
क्यों नींद, भूख, प्यास खोएं इनके पीछे
चलो, सामान बटोरें और इठलाएँ ज़रा हम
जोड़ा बहुत, अब खोने से डरे हैं
आधे जिए और आधे मरे हैं
ख़्वाबों की अर्थी पे जिंदा पड़े है
Published on December 25, 2021 13:10