मैं, सिर्फ़ मैं हूं

नहीं,
कोइ नहीं।

मैं,
सिर्फ़ मैं हूं।

बंजर, समंदर, आसमां या धरती,
बिरानों में मैं और बस्तियों में मैं हूं।

झुकती-उचकती, फिसलती-संभलती,
कभी केंद्रित, कभी दिशाविहीन मैं
रूक-रूक के चलती, चल-चल के रुकती
टूट कर भी न थमती,
बिन थके भी यदा-कदा आराम करती।

शून्य में सिमटी, उलझन में लिपटी
उदर में फिर भी ब्रम्हांड लिए विचरती,
क्योंकि
और कोई नहीं,
मैं,
सिर्फ़ मैं हूं।

– ऋजुता

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Published on January 11, 2022 14:34
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