अलबेला कड़ा हुआ

बदली करीबी कहीं पैसों से बिछड़े हुए गरीबी से,
बिछड़े हुए कम थे जब बेगम थे उजड़े हुए शराबी से,
शराब था नकाब था जवाब था अंधरूनी तो मुसाफिर सा,
खराब था बेताब था नवाब था कानूनी तो हंसा चतुर सिर सा,

बाल थे बचपन में जुनून का तोड़ मरोड़ तो बाकी जवान होंगे,
काल थे सच मन में सुकून का जोड़ करोड़ तो साकी हैवान होंगे,
हम में थी मातम में थी ख़तम हुई थी फोड़ में लाख सिसकी सा,
रम में थी सादम में थी जनम हुई थी रोड़ में राख व्हिस्की सा,

राख सस्ती हुई तलाख बस्ती हुई चराख कुश्ती हुई ये लो बावला है,
शाख हस्ती हुई गराख मस्ती ह...

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Published on November 09, 2022 08:57
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Views From The Left

Avishek Sahu
An insouciant take on life in general with a focus on seeking alternate theories to broad social factors that affect us.
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