BAPS और अन्य स्वामीनारायण संस्थाओं के द्वारा घड़ा गया सनातन धर्म विरोधी दर्शन
एक थे सहजानंद स्वामी जो स्वयं कृष्ण भक्त थे, और उन्होंने लोगों को कृष्ण भक्ति के लिए ‘स्वामीनारायण’ मंत्र दिया। पर उनके देहांत के बाद (कुछ लोगों के अनुसार उन्ही के आखरी वक्त में) कृष्ण भक्त सहजानंद गायब हो गए, श्रीकृष्ण और कृष्ण भक्ति भी गायब हो गई, और उस मंत्र के नाम से सहजानंद स्वामी को ही एक नया भगवान बना दिया गया। नाम था भगवान स्वामीनारायण। सहजानंद स्वामी के उद्धव संप्रदाय में जो कृष्ण भक्त लोग आते थे, उन्हे ‘हरी भक्त’ कहा जाता था। अब उन्ही भक्तों को स्वामीनारायण के भक्त कहा गया, लेकिन ‘हरी भक्त’ शब्द चालू रखा गया। इससे सहजानंद स्वामी को स्वामीनारायण के साथ भगवान विष्णु का दूसरा नाम हरी भी जोड़ दिया गया। पर यह दो नाम सनातन धर्म के जिस भगवान श्रीविष्णु के थे, उन्हे इन दो नामों की चोरी करकर छोड़ दिया गया। इतना ही नहीं हिंदु शास्त्रों में बारंबार वर्णित ‘अविनाशी (अक्षर) वैकुंठधाम’ से अक्षर शब्द को चोर कर एक नया अक्षरधाम इस नए भगवान को दिया गया। इस अक्षरधाम में स्वामीनारायण सिंहासन पर बैठते है, और उनके सामने ब्रह्मा, विष्णु, शिव, मां शक्ति और सारे हिंदू धर्म के देवी देवता एक पैर पर खड़े रहकर हाथ जोड़ते हुए उनकी स्तुति कर रहे होते है। मतलब, भगवान विष्णु के ही नाम और धाम को चोरकर विष्णु को ही इस नए भगवान का सेवक बना दिया गया।

और तबसे आज तक उस संप्रदाय के पुस्तकों और व्याख्यानों में रोज सनातन धर्म के देवी देवताओं का अपमान होता है। जैसे अरबी समाज में इस्लाम के उदय के साथ एक इश्वर को ‘अल्लाह’ नाम देकर अरब के सारे देवी देवताओ को मानने से इंकार कर दिया गया था। वैसा ही इस नए स्वामीनारायण संप्रदाय के माध्यम से सनातन धर्म में करने की कोशिश की जा रही है। और उसका बेज गुजरात है। फर्क सिर्फ इतना है की इस्लाम ने उसके पहले के अरबों के देवी देवताओं को जूठा कहकर मानने से इंकार कर दिया था, और स्वामीनारायण संप्रदाय में सनातन धर्म के सारे देवी देवताओं को इस नए भगवान के सेवक बताकर उन्हे ‘ वे पूजने योग्य नहीं है’ यह दिखाया जा रहा है। शुरुआत में वे हिंदुओ को अपने अंदर लाने के लिए सनातन धर्म के देवी देवताओं की ही बात करते है, मंदिरों में एक बाजु पर सबको स्थापित करते है, ताकि हिंदूओं को लगे की यह उन्ही के धर्म का मंदिर है। पर धीरे धीरे पुस्तकों और व्याख्यानों से उनकी ब्रेन वॉशिंग होती है की इन सबके आराध्य स्वामीनारायण है, और इन सबको शक्ति स्वामीनारायण से ही मिलती है। इसलिए सेवको को छोड़कर मूल इश्वर को ही पूजना चाहिए। जो लोग उसमे पूरी तरह शामिल हो जाते है, उनको अपने घर में स्वामीनारायण के सिवा किसी और भगवान की फोटो रखने के लिए मना कर दिया जाता है। उन्हे मां अंबा के नवरात्री में जाने से भी मना कर दिया जाता है। यह वही कोशिश है जो इस्लाम के द्वारा अरबी समाज में की गई थी।


स्वामीनारायण का स्वयं को लक्ष्मीजीऔर राधा का पति बताना एवं सरस्वती के माध्यम से स्वामीनारायण को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का आराध्य दिखाना अब इस स्वामीनारायण संप्रदाय की BAPS शाखा इसी विकृति में इसाई धर्म के पॉप का स्वरूप ले आई है। उनके द्वारा घड़ी गई फिलोसोफी या तथाकथित दर्शन को शॉर्ट में इस तरह समझ लीजिए। सनातन धर्म के हमारे शास्त्रों से शब्द लिए गए है और उन्हें नई फॉर्मेट में फिट करके समझाया गया है। तीन शब्द मुख्य है। एक परब्रह्म, दूसरा प्रगट ब्रह्म और तीसरा ब्रह्म। उनके संस्थापक सहजानंद स्वामी जिन्हे यह लोग बाद में स्वामिनारायण कहने लगे वह परब्रह्म है, यानी समग्र सृष्टि के स्वामी। वे धरती पर नहीं आते, वह कहीं दूर अपने अक्षरधाम नाम के स्थान पर है। दूसरा शब्द है प्रगट ब्रह्म। यह उनकी BAPS संस्था के मौजूदा प्रमुख के लिए कहा जाता है की वह प्रगट ब्रह्म है, जो परब्रह्म स्वामिनारायण से सीधे संपर्क में है। बिलकुल जैसे ईसाइयों में पॉप है। वह परब्रह्म के कहे अनुसार धरती पर कार्य करते है, और स्वामीनारायण संप्रदाय को पालने वाले लोगों की ओर से जरूरत पड़ने पर परब्रह्म से संपर्क करते है। लेकिन प्रगट ब्रह्म सिर्फ यह एक ही नहीं है। उनके भगवान स्वामीनारायण ने आदेश दिया था की मां शक्ति, गणपति, शिवजी और हनुमान की भी प्रगट ब्रह्म के रूप में ही पूजा की जाए। अर्थात् ये सभी भी धरती पर कहीं मौजूद है और परब्रह्म स्वामीनारायण से शक्ति पाकर उनके भक्तों को फल देते है। ये सभी परब्रह्म स्वामीनारायण के सेवक देवी देवता है जो उनके प्रतिनिधि के रूप में यहां काम करते है।
लेकिन क्योंकि ये सभी देवी देवता नज़र नहीं आते, इसलिए इनकी मंदिरों में स्थापना की जाती है, स्वामीनारायण की छत्रछाया में और हिंदू सनातन धर्मी उन्हे अपने शिव और हनुमान मानकर वहां जाते है। तो मौजूदा हिंदु अज्ञान वश ऐसे ही उनके साथ जुड़े नजर आते है। लेकिन क्योंकि एकमात्र प्रगट ब्रह्म वैसे संस्था के मौजूदा प्रमुख ही सदेह मानव के रूप में धरती पर भक्तो के बीच है, इसलिए वे इन सारे प्रगट ब्रह्म देवी देवताओं से बड़े और ज्यादा पूज्य है। वे आपको सीधा परब्रह्म स्वामीनारायण का आदेश सुना सकते है, और आपकी बात उन तक पहुंचा सकते है। जब यह मौजूदा संस्था प्रमुख मर जाते है तब उन्हे ‘ब्रह्म-स्वरूप’ कहा जाता है, और वे सब अक्षरधाम में परब्रह्म स्वामीनारायण के बाद दूसरे नंबर के स्थान पर बिराजते है, और उन्हें ही ‘अक्षर’ कहा जाता है। जब की संतान धर्म के शास्त्रों में अक्षर ॐ शब्द के तीन हिस्से ‘ आ ‘, ‘ ऊ ‘ और ‘ म ‘ को कहा गया है, जो की अव्यक्त, निराकार ब्रह्म है। यहां परब्रह्म स्वामीनारायण पुरूषोत्तम है, और यह सब देह छोड़ चुके प्रमुख उनके अक्षर है। यही उनकी संस्था का नाम है ‘बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम संस्था’ (BAPS)। बोचासन उस गांव का नाम है, जहां इसकी स्थापना हुई थी। यही उनका वह दर्शन है जो वह भारतीय छह दर्शनों के बाद सातवें दर्शन के रूप में स्थापित करना चाहते है। ‘अक्षर – पुरूषोत्तम दर्शन’, जो कहता है की परब्रह्म अवतार लेकर नहीं आते, वह तो उनके एक दास विष्णु करते है। परब्रह्म तो यहां अपने अक्षर (संस्था के प्रमुख) के रूप में प्रगट रहते है।
बस, इसी विचार को धीरे धीरे सालों तक घड़ा गया है, और इसके आधार पर सनातन धर्म का पूरा स्वरूप बदल दिया गया है और हजारों वर्षो से सनातन धर्म के आराध्य रहे ईश्वरों को अभी दो सो साल पहले जन्मे एक सन्यासी के नीचे ला दिया गया है। और वहीं से आरंभ होता है हिंदू धर्म के सारे आराध्यों का अपमान करती उन कथाओं का सिलसिला जिसमें वे सभी आराध्य ना सिर्फ दो सो साल पहले जन्मे सहजानंद स्वामी के नीचे है, बल्कि उस संस्था के मौजूदा और चल बसे प्रमुखों के भी नीचे है। उनके ग्रंथ और उनका बाल साहित्य भगवान शिव, मां पार्वती और भगवान श्री विष्णु को स्वामीनारायण का सेवक और दास बताती अपमानजनक कथाओं से भरा पड़ा है। नीचता इस हद तक है की विष्णु का आराध्य बन चुका यह नया भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी और श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधाजी को अपनी पत्नी बताता है। सवाल यह भी है की अगर परब्रह्म दो सो साल पहले पैदा हुआ कोई साकार रूप का भगवान है, तो फिर यह धर्म सनातन कैसे रहा? इनका स्वरूप ठीक वही इस्लाम और ईसाई मजहब की श्रेणी में है, जहां सृष्टि का स्वामी कोई एक सर्वोपरी साकार इश्वर है, जिसकी लिखी कानूनी किताब को मानने वाले मुक्ति पाते है। पर यह मुक्ति क्या है? यह मुक्ति स्वामीनारायण नाम के साकार इश्वर के अक्षरधाम में जाकर स्वामीनारायण और उनके संस्था प्रमुखों की सेवा में रह जाना है। यानी की संसार से मुक्ति ऊपर किसी धाम में एक साकार इश्वर और उसके संस्था प्रमुखों की दासता है। यह किस तरह से सनातन धर्म का हिस्सा हो सकता है? यह तो इस्लाम और ईसाई जैसे सैमेटिक मजहबों का स्वरूप है, जिसे हिंदू नामों के साथ खड़ा किया जा रहा है।
जैसे एक चोर किसी और की लूटी हुई दौलत से अपने आप को शाहूकार बना ले और फिर शाहुकारों के बीच उठने बैठने की कोशिश करे, वैसे ही वे अब इस दर्शन को हिंदु सनातन धर्म की संस्थाओं के सामने रखकर अपने आप को कोई बडे दर्शन का खोजी दिखाने की कोशिश कर रहे है। और काशी विद्वत परिषद में चाहे उन्होंने जो भी सुनाया हो, पर गुजरात और विश्वभर में उनका आचरण और ग्रंथ लेखन इस लेख में बताए गए विचारों से ही चलता है। यह भी उल्लेखनीय है की जोशीमठ और द्वारकापीठ के मौजूदा शंकराचार्य एवं मोरारीबापू और भाई श्री रमेशभाई ओझा भी इनके हिंदू ईष्ट देवताओ के बारे में अपमानजनक लेखन वह चिंतन के विरुद्ध समय समय पर आवाज उठा चुके है। इसलिए वक्त आ चुका है की गुजरात के बाहर के हिंदू सनातनी इस संप्रदाय के असली स्वरूप को जान ले। वे जब इनके मंदिरों में अपने किसी आराध्य को स्थापित देखे, तो इस विचारधारा को याद करे और समझे की उन्हें वहां किस तरह स्थापित किया गया है।
यह सारी विकृत किताबे जो स्वामीनारायण संप्रदाय में संमेलित होने वाले सन्यासियों की तालीम के लिए उपयोग में ली जाती है वे आप BAPS की वेबसाइट की इस लिंक से गुजराती, हिंदी एवं अंग्रेज़ी भाषा में डाउनलोड कर पाएँगे।
https://www.docdroid.net/lcLykLr/go?url=https://www.baps.org/SatsangExam/Studymaterials.aspx
अगर आप गुजराती पढ़ सकते है, तो स्वामीनारायण के प्रत्येक फिरके में सनातन धर्म के ईश्वरों के विरुद्ध कैसे कैसे विकृत कार्य, लेख एवं प्रवचन दिए गए है, यह आप इस PDF से जान पाएँगे। इस में तीन शंकराचार्यों के द्वारा स्वामीनारायण का विरोध करने और उन्हें सही मार्ग पर आ जाने की सलाह एवं चेतावनी देते हुए व्याख्यान और ख़त भी है। नीचे दी गई लिंक से आप PDF को पढ़ सकते है, और डाउनलोड भी कर सकते है।


