क्या अधिकांश लोग आत्म-ज्ञान प्राप्त करते ही शरीर छोड़ देते हैं?

मेरे आत्म-अनुभवों से इस मसले पर मेरी राय लेखक : डॉ. कौशिक चौधरी

जब से मेरी पुस्तक अंग्रेजी और फिर गुजराती-हिंदी में रिलीज हुई है और मैंने इसकी प्रस्तावना में अपने आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन के बारे में बताया है, एक सवाल है जो मैं बारबार सुनता हूं। यह सवाल है, ‘सदगुरु कहते हैं कि 99 प्रतिशत लोगों की आत्मा आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते ही शरीर छोड़ देती है, केवल एक प्रतिशत लोग शरीर में रह जाते हैं क्योंकि वे अपने निर्धारित कार्य को याद करते हैं। तो क्या यह सच है? इस मामले पर आपकी क्या राय है?’ मैंने उन सभी के संक्षिप्त सामयिक उत्तर दिए हैं, लेकिन आज मैं उस प्रश्न का अपना पूरा उत्तर दे रहा हूँ, क्योंकि यह अभी भी मुझसे पूछा जा रहा है। हालाँकि, अब सद्गुरु के व्याख्यानों में यह संख्या कम होकर 90% हो गई है, जिसे पहले वे 99% कहते थे। लेकिन आंकड़ों की धारणा को परे रखते हुए मैं उन आध्यात्मिक अनुभवों के बाद के अपने दिनों का कुछ विवरण दूंगा, जिसके बारे में मैंने अब तक किसी को नहीं बताया। मैं आज बता रहा हूं, क्योंकि यह इस विषय पर एक प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करता है।

मेरी कॉलेज और इंटर्नशिप पूरी होने में अब कुछ महीने ही बचे थे। मैं अपने हॉस्टल के एक कमरे में अकेला था। तब अप्रैल 2011 के महीने की एक मध्यरात्रि को आध्यात्मिक दुनिया की निर्कल्प समाधि से मैं गुज़रा। तक़रीबन दस मिनट तक वह अवस्था रही जिसमें मेरी आँखें आसपास का पूरा अस्तित्व एक प्रकाश में विलीन होता हुआ देख रही थी। आसपास की कोई वस्तु नहीं, कमरे की कोई दीवार नहीं, मेरा शरीर नहीं – कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, केवल एक प्रकाश। जब वह शांत हो गया, तो एक-दो घंटे बाद पूर्व जन्मों की यादें ताजा होने लगी। तब पता चला कि यह मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ है। यह मेरे पिछले दो जन्मों में हो चुका है। एक, जब मैं तेईस वर्ष की उम्र में अपनी पत्नी और एक छह महीने के बेटे को छोड़कर संन्यास लेकर हिमालय चला गया था। और दूसरे जन्म में जब मैं एक आत्म-साक्षात्कारी योगी के रूप में दुनिया के बीच रहा और भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार किया। उसके बाद यह तीसरी बार मैं किसी शरीर में आया हूँ। सुबह छह बजे मैं बिस्तर पर बैठा हुआ था, स्तब्ध। दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी। ब्रश मुश्किल से किया गया था, मलत्याग नहीं हो पाया था। कॉलेज जाने का मन नहीं किया। दोपहर दो बजे मेस में खाना खाने गया, लेकिन उसे मुंह में डालते ही चबाने का मन नहीं हुआ। ऐसी कोई भी चीज़ जो शरीर के लिए की जाति हो, मैं नहीं कर पा रहा था। यह स्थिति लगातार बनी रही। मुझे ऐसा लगा कि पिछले दो तपस्वी जन्मों के बाद कुछ कर्म बचे होंगे, जो इस जीवन के उन पहले तेईस वर्षों में नष्ट हो गए। अब शायद समय आ गया है कि इस शरीर को छोड़कर हमेशा के लिए मुक्त हो ज़ाया जाएं। ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी भी क्षण शरीर छोड़ दूंगा। लेकिन माता-पिता का विचार आया। उनको क्या लगेगा की लड़के के साथ क्या हुआ होगा? उन्हें कभी पता नहीं चलेगा कि मैंने उन प्राचीन योगियों की तरह खुशी-खुशी ख़ुद अपना शरीर छोड़ दिया था। एक बार घर जाकर उनसे मिल लेना चाहिए।

वीकेंड पर बड़ौदा से घर गया, और रात में माता-पिता को सारी बात बताई। मैंने उन्हें किसी प्राचीन ऋषि की तरह उपदेश दिया, ‘मेरी यात्रा यहीं समाप्त हो सकती है। मैं किसी भी क्षण इस शरीर को छोड़ सकता हूँ। लेकिन मेरे लिए कभी शोक मत करना। इस दुनिया में इससे ज्यादा खूबसूरत अवस्था कोई नहीं है। यदि यही मोक्ष है, तो यही लक्ष्य होना चाहिए। मेरे जाने के बाद साधना की ओर मुड़ें। नहीं तो तुम ऐसे अनेक जन्मों के चक्र में फँसे रहोगे, जहाँ किसी भी क्षण कोई भी ऐसी विपदा उत्पन्न होगी।’ यह सुनते ही माँ फड़फड़ाते हुए रोने लगी। पिताजी ने उसकी देखभाल करने की कोशिश की। मैंने कुछ देर उन्हें एकटक देखा और फिर कहा, ‘यह माया है। यह आपको सुख इसलिए देती है, क्योंकि वह आपको दुखी कर सके। अंत में मृत्यु सब कुछ का अंत है। इससे ऊपर उठने की ताकत पैदा करनी होगी। सिर्फ़ बातों से कुछ नहीं होगा। कायर के लिए कोई मुक्ति नहीं है, केवल गुलामी की पीड़ा है।’ यह कहकर मैं उठकर दूसरे कमरे में चला गया। लेकिन दस मिनट बाद फिर बाहर आया, उन्हें कुछ और शांति देने के लिए। लेकिन मां लगातार रो रही थी। पापा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी हिम्मत भी अंदर से आधी हो गई थी। मुझे वहाँ खड़ा देखकर माँ एक क्षण के लिए चुप हुई और पूछा, ‘अब क्या होगा?’ इतना कहकर वह फिर से उसी तरह रोने लगी। मैं उनका इकलौता लड़का था। इसलिए उसके पीछे बुनी गई दुनियादारी शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो रही थी। ऐसा लगा जैसे मेरे जाने के बाद वह इसी तरह मर जाएगी। वह इसके लिए तैयार नहीं थी। जैसे ही यह बोध मेरे ध्यान में आया, मैं तुरंत उसकी ओर दौड़ा, और अपने अभिनय कौशल को काम में लाया। ‘अरे पागल, मैं तो बस ऐसे ही कह रहा था। मैं पिछले एक सप्ताह से इस प्रकार की कल्पनाएँ कर रहा हूँ, तो मैंने सोचा तुम्हें भी बताऊँ। एक कल्पना यह भी की थी कि मैं ही विवेकानंद था। और एक दिन तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं विष्णु हूं, और एक अवतार बनकर आया हूँ। तो, ऐसे ही एक विचार यह भी था कि मैं कहीं मर जाऊंगा। तुम्हारी चिंता हुई तो पहले यह बता दिया। अगर तुम इसे मानती हो, तो तुम्हें यह भी मानना होगा की मैं भगवान हूँ। क्या तुम इतनी मूर्ख हो? मैं मरना नहीं चाहता, मैं यहीं हूं।’ जैसे ही मैंने यह कहा, दो घटनाएं एक साथ हुईं। माँ शांत हो गई। और दूसरी, मुझे लगा जैसे मेरी आत्मा ने मेरे इस शरीर को हाथ से पकड़कर अपने ऊपर वस्त्र की तरह जोड़ लिया। शरीर की वह दूरी जो इतने दिनों से मैं अनुभव कर रहा था, वह अचानक ख़त्म हो गई। मैं इस अनुभव से कुछ देर के लिए चुप हो गया। यह देखकर माँ की चिंता फिर बढ़ गई। लेकिन इस बार मैंने मज़ाक़िया अंदाज़ हटाते हुए गंभीर आवाज़ में कहा, ‘मैंने तुमसे कह दिया ना, मैं नहीं जा रहा हूं। बात खत्म हो गई। चलो, अब नॉर्मल हो जाओ, और मेरे लिए सुखडी बनाकर लाओं।’ वह अपने आँसुओं को पोंछते हुए उठखड़ी हुई, और धीरे से मेरा हाथ पकड़ कर मेरी हथेली को चूमा, और कुछ मिनटों बाद अंदर मेरे लिए सुखड़ी बनाने चली गई।

तो इस तरह, मैं इस बार शरीर में टिक गया। अगले दिन मैं फिर से कॉलेज के लिए निकल गया, और अधिकांश समय हॉस्टल में ध्यान करने और विवेकानंद की पुस्तकें पढ़ने में बिताने लगा। इसके पहले के जीवन के तेइस साल में जो धर्म और आध्यात्म एक एलियन विषय था, जिसकी कभी मैंने कोई चालीसा तक नहीं पढ़ी थी, अब सिर्फ़ उसीमें मुझे शांति मील रही थी। इन्ही दिनों एक दिन ध्यान में एक नया संस्मरण जागरूक हुआ। संसार में रहकर भारतीय अध्यात्म का प्रसार करने वाले उन योगी ने अपने जीवन के अन्तिम दिनों में सोचा कि अब उनका कार्य पूर्ण हो गया है, उन्हें अब मोक्ष प्राप्त कर लेना चाहिए। वह उस समय कैलिफोर्निया में थे। उन्होंने ध्यान में बैठकर यह जाँचने का प्रयास किया कि कहीं मोक्ष की राह में कोई बाधा तो नहीं है? ध्यान में वे मोक्ष के अंतिम द्वार तक गए, जिसके पीछे केवल दिव्य प्रकाश था। वह दरवाजा खुल गया, लेकिन योगी उसे पार नहीं कर सके। लगा जैसे कोई पीछे खींच रहा हो। मानो वह अभी भी किसी से बंधे हुए है, कोई ऐसा जो संसार में पीछे छूट गया है। उन्होंने ढूँढा, पर वह कौन था यह पता नहीं चल सका। उन्होंने अमेरिका की अपनी यात्रा बीच में ही छोड़ दी और भारत लौट आए। कुछ महीनों के बाद वे अपनी एक शिष्या के साथ हिमालय की यात्रा पर निकल गए। वहां हिमालय में उन्होंने लगातार ध्यान किया, और वहां उन्होंने जाना कि वास्तव में उनकी वह पत्नी जिसे छोड़कर वे संन्यास लेकर हिमालय चले गए थे, वह उसके पहले के सारे जन्मों में भी उनकी पत्नी थी। वह संसार में पीछे छूट गई है। उसे अपने आगे रखकर मोक्ष का वह अंतिम द्वार उसे पार कराने के बाद ही उन्हें मोक्ष प्राप्त करना चाहिए। यही उनका धर्म है। क्‍योंकि उस जन्‍म में जब सगे-संबंधियों आदि ने उन्‍हें अपनी पत्‍नी और बेटे को दिखाकर संन्‍यास लेने से रोका, तो उन्होंने लोगों को यही कहा था, ‘ये भी मरने वाले हैं, जैसे हमारी पहली बेटी जन्‍म के तीन साल के भीतर ही मर गई। फिर क्या? क्या अपनी पत्नी के साथ यह क्षणिक भोग करना ही प्रेम है? क्या यही उसकी चिंता करना है? क्या सिर्फ़ यही मेरी ज़िम्मेदारी है? मैं इनके लिए, अपने लिए और अपने हर स्वजन के लिए मुक्ति पाने जा रहा हूं, ताकि मैं मृत्यु के बाद भी उनके साथ एक रह सकूं।’

यह जानकर योगी का ध्यान खुला। वह समझ गए की उन्हें अपनी कई जन्मों की पत्नी को लेने के लिए संसार में वापस आना है, और वह भी संसारी बनकर। लेकिन उनकी आत्मा इतनी विकसित हो चुकी थी कि उस आत्मा को उसके लायक सांसारिक शरीर पाने में पांच सौ साल लग जाते। इस कारण उन्होंने एक नया रास्ता अपनाया। उन्होंने अपनी विकसित आत्मा को तीन भागों में विभाजित किया। और तीनों हिस्सों ने सांसारिक जन्म लिए। एक का जन्म मुंबई में एक धर्मनिष्ठ फिल्म अभिनेता के बेटे के रूप में हुआ। और अन्य दो का जन्म उत्तर गुजरात के दो अलग-अलग जिलों में किसान परिवारों में हुआ। मुंबई में जन्मा हिस्सा एक सफल अभिनेता और फिल्मकार बना, जिसकी फिल्में भारतीयता और आध्यात्मिकता से भरी हुई थीं। किसान परिवार में जन्म लेनेवाले दो भागों में से एक शक्तिशाली किन्तु वैरागी नेता एवं समाजसेवी बना, जबकि दूसरा भाग साधारण किसान बना रहा, जिसमें गहरीं आध्यात्मिक समझ और वैराग्य था। वह अपने गाँव के लोगों में काफ़ी सम्मानित रहा। इस आम किसान के मरने के बाद उस हिस्से के दूसरे जन्म के रूप में मेरा जन्म हुआ। मेरे जन्म के तीन महीने में उस फिल्मकार ने भी शरीर छोड़ दिया और वह हिस्सा मेरे हिस्से में मिल गया। जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था, उस समाजसेवी नेता का भी देहांत हो गया और वह आत्मा भी आकर मुझमें विलीन हो गई। इस प्रकार उस योगी ने अलग किए अपने तीन हिस्से सोलह वर्ष की आयु में मेरे शरीर में फिर से एक हो गए। और यहीं से मैं वर्तमान शिक्षाप्रणाली से विमुख हो गया और जीवन के किसी सार्थक उद्देश्य की खोज में भटकने लगा। यहाँ से उस साक्षात्कार की रात तक की कहानी मेरी पुस्तक की प्रस्तावना में दी गई है। 2011 से 2017 तक, मैं अपनी पिछली यात्रा की यादों से दूर भागता रहा, और दुनिया को पुस्तक और लेखों के माध्यम से सृष्टि का सत्य और मानव उत्पत्ति के कारण की जानकारी दी। लेकिन 2017 में जिस व्यक्ति के लिए मैं सच में आया था, उसकी पहचान मेरे सामने खुल गई। और उसके बाद की घटनाओं ने मुझे अपने पिछले जन्मों की यात्रा को स्वीकार करने और उसके प्रति कार्य करने के लिए बाधित किया है। इसी वजह से अब मैं उन्हें ऐसे किसी विषय के संदर्भ में कहने के लिए प्रेरित हो पाता हूँ।

अत: हिमालय पर गये उस तपस्वी को जब वन में आत्मसाक्षात्कार हुआ, तो कुछ दिनों बाद उसने शरीर त्याग दिया, क्योंकि शरीर छोड़ने के पूर्व उन्हें अपनी पत्नी का स्मरण किया हुआ और उस जागरूक हुए आत्मा से उन्होंने जान लिया था कि वह मर चुकी है। तो उनकी जागृत आत्मा ने उस शरीर को पकड़ने की कोशिश नहीं की। उनका दूसरा जन्म उनके अपने पुत्र के पुत्र के रूप में हुआ, जिसे उन्होंने छह महीने की उम्र में त्याग दिया था। जब उस योगी ने इस दूसरे जन्म में आत्म-साक्षात्कार प्राप्त किया, तो वह अपने गुरु की छत्रछाया में थे। और जब वह निर्विकल्प समाधि के बाद गुरु के पास गए, तो गुरु ने उनसे कहा, ‘मैं तुम्हारी इस शक्ति को तुम्हारे मन की एक तिजोरी में बंद कर रहा हूं, जिसकी चाबी मेरे पास रहेगी। उससे तुम इस संसार में वह आवश्यक कार्य कर सकोंगे जिसकी संसार को ज़रूरत है। अन्यथा तुम समाधि से बाहर नहीं निकलोगे, और शरीर छोड़ दोगे। जीवन के अंतिम समय में जब तुम्हें इस शक्ति की आवश्यकता होगी, तब यह अपने आप तुम्हारे अंदर खुल जाएगी।’ तो इस बारे में मेरा तीन जन्म का अनुभव यही कहता है। मैंने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा या जाना नहीं है जिसने आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करते हुए उसी क्षण शरीर छोड़ दिया हो। लेकिन हाँ, उस समय आत्मा की स्थिति ऐसी होती है कि कोई आवश्यक कारण न होने पर या आवश्यक परिस्थितियाँ उत्पन्न न होने पर व्यक्ति उस शरीर में अधिक समय तक नहीं रह सकता।

 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on February 23, 2023 18:53
No comments have been added yet.