उसे दिन तुमने मुझे खो दिया,
जब तुम्हें मेरा बोलना, मेरी खामोशी से ज्यादा खल ने लगा,
जब मेरी आंखों का पानी तुम्हें बस ‘ओवर’ लगने लगा,
उसे दिन तुमने मुझे खो दिया।
जब मेरे हर बार लौट के आने को, तुमने मेरी आदत समझ लिया,
हर उसे बार तुमने मुझे थोड़ा-थोड़ा खो दिया।
जब मेरा इंतजार तुम्हारे लिए बोझ बन गया, और मेरा प्यार एक पुरानी सी किताब जिसे तुमने यूं ही कहीं आधा पढ़कर छोड़ दिया,
उसे दिन तुमने मुझे कहीं खो दिया।
जब तुम मेरी दुनिया थे, पर मुझे तुम्हारे ‘मैं’ में जगह ना मिल सकी,
और उस दिन तुमने मुझे कहीं खो दियाl
जब मैने तुम्हें टूट कर चाहा, पर तुम मेरी खामियों के आगे देख ना सके,
उसे दिन तुमने मुझे कहीं खो दिया।
वो एक रोज की बात नहीं थी,की सुबह हुई और सब खो गया।
हर उसे लड़ाई में तुमने मुझे, थोड़ा-थोड़ा खो दिया।
अब चाहे हजार बार लौट आओ तुम,मुझ में वो मैं अब कहीं बची नहीं,जिसने कभी तुमसे प्यार किया।
मुझ में अब वो पहले सी मोहब्बत तो है ही नहीं,कुछ है जो खत्म अब भी होता नहीं,सब खो कर भी जो खोता नहीं।
शायद वो आदत है तुम्हारा ख्याल रखने,तन्हाई का डर, या यादें तुम्हारे साथ चलने की,मैं तेरी परवाह किए बिना, अब भी सोता नहीं।
ना तू गलत था ना मैं गलत थी,फिर भी गलत सब हो गया,और हम दोनों ने यूं एक दूसरे को कहीं खो दिया