कुश कल्याण, बूढ़ा केदार, ऋषियों की साधना स्थली-तपोवन, बालीपास (17500 फीट), कालिन्दी खाल पास (19890 फीट), दरवा टॉप (14500 फीट), गणेश की जन्मस्थली-डोडी ताल, शंकर एवं काली माँ की मिलन स्थली-रूपकुंड, दुर्योधन के छुपने के गुप्त स्थल-हर की दून,
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“कुश कल्याण, बूढ़ा केदार, ऋषियों की साधना स्थली-तपोवन, बालीपास (17500 फीट), कालिन्दी खाल पास (19890 फीट), दरवा टॉप (14500 फीट), गणेश की जन्मस्थली-डोडी ताल, शंकर एवं काली माँ की मिलन स्थली-रूपकुंड, दुर्योधन के छुपने के गुप्त स्थल-हर की दून, महादेव की नृत्य स्थली-रुदुगैरा, पांडवों द्वारा पदाक्रान्त-आडेन कॉल (17800 फीट) एवं धुमदार कांडी (18000 फीट) तथा लद्दाख़ हिमालय के दर्रों में— अब तक भटक रहे हैं। इस यायावरी के दौरान अपना स्वरूप बदलते गंगोत्तरी, खतलिंग, रुदुगैरा, कालानाग आदि अनेक ग्लेशियर मेरे कैमरे में छुप महफूज़ हो गए, तथा इसी दौरान अपनी दुकानदारी”
― Darra Darra Himalaya
― Darra Darra Himalaya
“मामूली सी छड़ी के सहारे जब मैं अधर में लटका था तब वह कौन था जो मुझे थामे खड़ा था— मैं नहीं जानता— शायद ईश्वर और ईश्वरीय शक्तियाँ ऐसे ही अपने-आपको प्रकट करती होंगी...”
― Darra Darra Himalaya
― Darra Darra Himalaya
“रुको तुम- मत खोलो इन बन्द पटों को, मुझे बहुत डर लगता है – इन पटों के पीछे बंद हैं कितनी दबी अवाज़ें, विह्वल चीत्कार, कितनी सुनी आँखें, कातर पुकार, कित्ने हाथों का कम्पन, रुँधी गुहार, कितनी आशाएँ, बेबस मनुहार– ये सब धीरे-धीरे पटों के पीछे बन्द हो गइ हैं उन सब अनगिनत अतिरेकों के संग, जो जमाई हैं हमने हमारे भविष्य को देने को रंग- इन पटों से दुर रहो, तुम मत खोलो इन्हें, मुझे बहुत दर लगता है- पत खुलते ही वो आँखें, पुकार, गुहार, वह आशाएँ काँपते हाथों में बन्द में अभिलाषाएँ, छिटक कर तिजोरी से फैल जाएँगी पूरे शयनकक्ष में, करेंगी पीछा मेरा खरोंचने को अपना वर्तमान, मेरे भविष्य से– तुम तब तक दूर रहो अलमारी के पेटों से, जब तक कि मैं शिकार न कर लूँ मुँडेरों से झाँकती सारी भावनाओं का, रुको तुम मत खोलो इन पटों को - मुझे बहुत डर लगता है”
― Darra Darra Himalaya
― Darra Darra Himalaya
“अरे आप जीवन की दौड़ से भागकर यहाँ हिमालय पर आए हैं— कुछ देर ठहरकर देखें तो सही। गुज़रते क्षण और आते क्षण के मध्य में जो एक छुपा हुआ स्पन्दनहीन अन्तराल है, आती और जाती साँस के मध्य जो एक निष्कम्प ठहराव है, उसको महसूस करने की चेष्टा करें। गति से अभिभूत हम लोग उस ठहराव की आदतन उपेक्षा करते हैं, जबकि मुझे लगता है कि जिस आनन्द की खोज में हम सब भाग रहे हैं वह तो उसी ठहराव में छुपा हमारा इन्तज़ार कर रहा होता है।”
― Darra Darra Himalaya
― Darra Darra Himalaya
“कतई नहीं”...,अपर्णा स्थिर एवं गम्भीर स्वर में बोल रही थी— “मन से यह ख़याल निकाल दो कि हमें यहाँ जबरन लाया गया है। हमारी सामाजिक व्यवस्था ने, तुम पुरुषों के जेहन में यह सामन्तवादी धारणा गहरे तक पैठा दी है कि स्त्री और बच्चे पुरुष के मातहत हैं। मेरा इस समय यहाँ होना तुमसे हमारे जुड़ाव का द्योतक है, न कि बंधन का लक्षण। हम विवश नहीं— स्वतंत्र हैं। हम अधीन हैं किन्तु— स्वाधीन। मैं तथा अद्वैत, हम दोनों यहाँ हैं क्योंकि हम यहाँ आना चाहते थे।” अपनी वाणी को विराम देते हुए अपर्णा मेरे निकट सरक आई थी। “आप लोगों का हो गया हो तो अब थोड़ा सो लें। मौसम ठीक रहा तो रनी भैया कुछ ही देर में उठाने आ जाएँगे”... अद्वैत ने करवट बदल मेरी ओर देखते हुए कहा। टेंट में रोशनी न होने के बावजूद उसके अश्रु मुझसे छुप न सके। घुमड़ते नयनों में बिजलियाँ जो कौंधती हैं!”
― Darra Darra Himalaya
― Darra Darra Himalaya
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