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प्रतिनिधि कविताएँ by
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Ankur
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मैं नहीं चाहता
सड़े हुए फलों की पेटियों की तरह
बाज़ार में एक भीड़ के बीच मरने की अपेक्षा
एकांत में किसी सूने वृक्ष के नीचे
गिरकर सूख जाना बेहतर है।
मैं नहीं चाहता कि मुझे
झाड़-पोंछकर दुकान पर सजाया जाए,
दिन-भर मोल-तोल के बाद
फिर पोटियों में रख दिया जाए,
और एक ख़रीदार से
दूसरे ख़रीदार की प्रतीक्षा में
यह जीवन अर्थहीन हो जाए।
— Jan 02, 2022 11:29AM
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सड़े हुए फलों की पेटियों की तरह
बाज़ार में एक भीड़ के बीच मरने की अपेक्षा
एकांत में किसी सूने वृक्ष के नीचे
गिरकर सूख जाना बेहतर है।
मैं नहीं चाहता कि मुझे
झाड़-पोंछकर दुकान पर सजाया जाए,
दिन-भर मोल-तोल के बाद
फिर पोटियों में रख दिया जाए,
और एक ख़रीदार से
दूसरे ख़रीदार की प्रतीक्षा में
यह जीवन अर्थहीन हो जाए।
Ankur
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"तुम्हारा मौन"
तुम्हारे
पतले होंठों के नीचे
एक तिल है
गोया ईश्वर की ओर से
एक कील जड़ी हुई,
जो तुम्हारे
हर मौन को
अलौकिक बनाता है।
— Dec 16, 2021 04:33AM
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तुम्हारे
पतले होंठों के नीचे
एक तिल है
गोया ईश्वर की ओर से
एक कील जड़ी हुई,
जो तुम्हारे
हर मौन को
अलौकिक बनाता है।
Ankur
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...
"कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना।"
— Dec 11, 2021 11:16PM
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"कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना।"




