फेक कपल
आसिफ और अरीबा— कहानी के दो मुख्य किरदार, जो एक दूसरे से अजनबी थे, जो एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं जानते थे और जिनके मिज़ाज और आदतें ज्यादातर एक दूसरे से अपोजिट थे… उनकी ज़िंदगी में एक मोड़ आता है जब उन्हें मुंबई जैसे महानगर में सिर्फ रहने की ग़रज से एक मनपसंद ठिकाना पाने के लिये आपस में एक समझौता करना पड़ता है— रहने की शर्त के मुताबिक ख़ुद को मियां-बीवी बताने का, दिखाने का, और ज़रूरत पड़े तो इस रिश्ते को साबित करने का।
लेकिन क्या यह कैसे भी आसान था? जब वे एक दूसरे से इतने अलग थे, उनके काम अलग थे, उनके सपने, उनके गोल अलग थे और उनके मिज़ाज अलग थे। कई मौकों पर उनके बीच झगड़ने तक की नौबत आ जाती— लेकिन यह झगड़े भी उन्हें हकीक़ी मियां-बीवी ही साबित करते। शायद ऐसे ही तो होते हैं असलियत के पति-पत्नी— एक दूसरे से अलग, मगर एक दूसरे के साथ निभाने की जद्दोजहद करते। वे असल में जितने अलग दिखने की कोशिश करते थे— उतने ही वे एक लगते थे।
दोनों की आर्थिक स्थिति भी अलग थी— आसिफ जहां एक निम्न वर्गीय परिवार से था, जिस पर इतनी ज़िम्मेदारियां लदी हुई थीं कि वह ख़ुद के बारे में सोचना ही भूल गया था, ख़ुद की जरूरतों को दरकिनार कर दिया था और एक लंबे अरसे से अच्छा बेटा और अच्छा भाई होने की जैसे अंतहीन जद्दोजहद में उलझा हुआ था— वहीं अरीबा एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती, एक अच्छे खाते-पीते मगर ऑर्थोडॉक्स टाईप घराने से ताल्लुक रखती थी, जहां लड़की होने का मतलब ज़रूरत भर पढ़ाई, फिर शादी और चूल्हे-चौके के इर्द-गिर्द सिमटी, पति की सेवा और बच्चों की परवरिश भर होता था और वह इस सोच के ही खिलाफ थी, और अपने घर-खानदान में सबसे अलग कुछ कर दिखाने के ख़ब्त से भरी थी।
किसी और के लिये शायद ऐसी सोच को ख़ब्त कहना ठीक न होता लेकिन अरीबा के लिये यही शब्द ठीक था… जो वह करना चाहती थी, वह उनके लिये भी नामुमकिन की हद तक मुश्किल होता है जिन्हें फैमिली सपोर्ट मिलता है तो उसके लिये तो लगभग नामुमकिन ही था, जिसे बस एक साल का वक़्त और ज़रूरत भर पैसे दिये गये थे ख़ुद को साबित करने के— और वह भी कई शर्तो के साथ। उन शर्तों में एक शर्त वह भी थी, जिसे निभाने की मजबूरी में उसे आसिफ के साथ शादीशुदा होने का दिखावा करते, रहने के लिये वह जगह हासिल करनी पड़ रही थी जो उसके घर वालों के दिये क्राइटेरिया पर खरी उतरती थी। बात सिर्फ दो-चार दिन की होती तो भी आई-गई हो जाती लेकिन उसे तो एक अजनबी मर्द के साथ बाकायदा लंबे वक़्त तक रहना था— बतौर बीवी।
फिर यह कहां आसान था कि एक बेडरूम को शेयर करते, उन दोनों की भावनायें एक दूसरे के लिये अछूती रहतीं? दो अजनबियों का यूं साथ-साथ रहना, एक कमरे में रहना, कब तक उन्हें एक दूसरे से दूर रखता— वह भी ऐसी हालत में जब उनका कहीं और कोई कमिटमेंट भी न हो। यह तो आग और पेट्रोल के आसपास रह कर भी अप्रभावित रहने वाली बात होती, जो मुमकिन ही नहीं थी— न उनके लिये ही बहुत दूर तक और बहुत देर तक एक दूसरे के आकर्षण से मुक्त रह पाना मुमकिन था… लेकिन एक दूसरे की आग में जलने में भी कम अड़चनें कहाँ थीं?
ज़िंदगी ऐसे ही थोड़े सबकुछ आपको दे देती है, जो आपको चाहिये होता है— बल्कि हर अहम हासिल के बदले सख़्त इम्तिहान लेती है। अक्सर लोग नाकाम रहते हैं इन इम्तिहानों में— और अक्सर कामयाब भी होते हैं। उन दोनों की किस्मत में क्या था? नाकामी या कामयाबी? मिलना या बिछड़ना? यह जानने के लिये तो आपको इस हसीन सफ़र पर उनके साथ चलना होगा— उनके साथ जीना होगा। उनके हर तजुर्बे और हर अहसास में हिस्सेदारी करनी होगी, जहां बहुतेरी बातें आपके मन को गुदगुदायेंगी तो बहुतेरी बातें आपको क्षणिक तनाव भी देंगी।
फिर कहानी में इन दो किरदारों की ही ज़िंदगी नहीं उकेरी गई है, बल्कि और भी कई किरदार हैं, जिनके पास अपने तल्ख या खुशगवार तजुर्बे हैं, अपने किस्से हैं, जो कभी मुस्कुराने की वजह देते हैं तो कभी आँख नम करने की ताक़त भी रखते हैं। हर किरदार, जो इस कहानी का हिस्सा है— अपनी जगह अहम है। तो आइये, शुरू करते हैं इन सब किरदारों के साथ एक हसीन सफ़र।
Fake Couple
Ashfaq Ahmad
लेकिन क्या यह कैसे भी आसान था? जब वे एक दूसरे से इतने अलग थे, उनके काम अलग थे, उनके सपने, उनके गोल अलग थे और उनके मिज़ाज अलग थे। कई मौकों पर उनके बीच झगड़ने तक की नौबत आ जाती— लेकिन यह झगड़े भी उन्हें हकीक़ी मियां-बीवी ही साबित करते। शायद ऐसे ही तो होते हैं असलियत के पति-पत्नी— एक दूसरे से अलग, मगर एक दूसरे के साथ निभाने की जद्दोजहद करते। वे असल में जितने अलग दिखने की कोशिश करते थे— उतने ही वे एक लगते थे।
दोनों की आर्थिक स्थिति भी अलग थी— आसिफ जहां एक निम्न वर्गीय परिवार से था, जिस पर इतनी ज़िम्मेदारियां लदी हुई थीं कि वह ख़ुद के बारे में सोचना ही भूल गया था, ख़ुद की जरूरतों को दरकिनार कर दिया था और एक लंबे अरसे से अच्छा बेटा और अच्छा भाई होने की जैसे अंतहीन जद्दोजहद में उलझा हुआ था— वहीं अरीबा एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती, एक अच्छे खाते-पीते मगर ऑर्थोडॉक्स टाईप घराने से ताल्लुक रखती थी, जहां लड़की होने का मतलब ज़रूरत भर पढ़ाई, फिर शादी और चूल्हे-चौके के इर्द-गिर्द सिमटी, पति की सेवा और बच्चों की परवरिश भर होता था और वह इस सोच के ही खिलाफ थी, और अपने घर-खानदान में सबसे अलग कुछ कर दिखाने के ख़ब्त से भरी थी।
किसी और के लिये शायद ऐसी सोच को ख़ब्त कहना ठीक न होता लेकिन अरीबा के लिये यही शब्द ठीक था… जो वह करना चाहती थी, वह उनके लिये भी नामुमकिन की हद तक मुश्किल होता है जिन्हें फैमिली सपोर्ट मिलता है तो उसके लिये तो लगभग नामुमकिन ही था, जिसे बस एक साल का वक़्त और ज़रूरत भर पैसे दिये गये थे ख़ुद को साबित करने के— और वह भी कई शर्तो के साथ। उन शर्तों में एक शर्त वह भी थी, जिसे निभाने की मजबूरी में उसे आसिफ के साथ शादीशुदा होने का दिखावा करते, रहने के लिये वह जगह हासिल करनी पड़ रही थी जो उसके घर वालों के दिये क्राइटेरिया पर खरी उतरती थी। बात सिर्फ दो-चार दिन की होती तो भी आई-गई हो जाती लेकिन उसे तो एक अजनबी मर्द के साथ बाकायदा लंबे वक़्त तक रहना था— बतौर बीवी।
फिर यह कहां आसान था कि एक बेडरूम को शेयर करते, उन दोनों की भावनायें एक दूसरे के लिये अछूती रहतीं? दो अजनबियों का यूं साथ-साथ रहना, एक कमरे में रहना, कब तक उन्हें एक दूसरे से दूर रखता— वह भी ऐसी हालत में जब उनका कहीं और कोई कमिटमेंट भी न हो। यह तो आग और पेट्रोल के आसपास रह कर भी अप्रभावित रहने वाली बात होती, जो मुमकिन ही नहीं थी— न उनके लिये ही बहुत दूर तक और बहुत देर तक एक दूसरे के आकर्षण से मुक्त रह पाना मुमकिन था… लेकिन एक दूसरे की आग में जलने में भी कम अड़चनें कहाँ थीं?
ज़िंदगी ऐसे ही थोड़े सबकुछ आपको दे देती है, जो आपको चाहिये होता है— बल्कि हर अहम हासिल के बदले सख़्त इम्तिहान लेती है। अक्सर लोग नाकाम रहते हैं इन इम्तिहानों में— और अक्सर कामयाब भी होते हैं। उन दोनों की किस्मत में क्या था? नाकामी या कामयाबी? मिलना या बिछड़ना? यह जानने के लिये तो आपको इस हसीन सफ़र पर उनके साथ चलना होगा— उनके साथ जीना होगा। उनके हर तजुर्बे और हर अहसास में हिस्सेदारी करनी होगी, जहां बहुतेरी बातें आपके मन को गुदगुदायेंगी तो बहुतेरी बातें आपको क्षणिक तनाव भी देंगी।
फिर कहानी में इन दो किरदारों की ही ज़िंदगी नहीं उकेरी गई है, बल्कि और भी कई किरदार हैं, जिनके पास अपने तल्ख या खुशगवार तजुर्बे हैं, अपने किस्से हैं, जो कभी मुस्कुराने की वजह देते हैं तो कभी आँख नम करने की ताक़त भी रखते हैं। हर किरदार, जो इस कहानी का हिस्सा है— अपनी जगह अहम है। तो आइये, शुरू करते हैं इन सब किरदारों के साथ एक हसीन सफ़र।
Fake Couple
Ashfaq Ahmad
Published on October 29, 2023 19:47
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Lafztarash
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