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“वह कैलेण्डर के बदलते पृष्ठों के बीच आखिरी दिन वाला पन्ना थी, संसार में जिसे फाड़े जाने का रिवाज नहीं था।”
― KHELA
― KHELA

“चूँकि अलौकिक शक्तियों के साथ साथ उसमें लौकिक गुण भी थे और उनके प्रभाव से कुछ भी सोचते वक्त उसके चेहरे पर मन के भाव बड़ी उन्मुक्तता से पसर आते थे और ऐसे वक्त वह कभी अपने आप को तमतमाते हुए, कभी मुस्कुराते हुए, कभी लजाते हुए, कभी इतराते हुए और कभी मुरझाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया करती थी और चोर नजरों से उसे इधर-उधर 'किसी ने देखा तो नहीं' की टोह लेनी पड़ती थी इसलिए अंधेरे में सोचना उसने अपने लिए सर्वथा माकूल घोषित किया था।”
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra

“मैं देखता रहा, वो जाते रहे।
फिर मैं भी चला, मगर वो याद आते रहे।”
― Small Guide to Start Business: Learn Basics of Business
फिर मैं भी चला, मगर वो याद आते रहे।”
― Small Guide to Start Business: Learn Basics of Business

“A great person is not great in every field.”
― Small Guide to Start Business: Learn Basics of Business
― Small Guide to Start Business: Learn Basics of Business

“तुम्हारा अच्छा होना, मुझे बुरा नहीं बनाता।
तुम्हारा समझदार होना, मुझे मूर्ख नहीं बनाता।”
― Small Guide to Start Business: Learn Basics of Business
तुम्हारा समझदार होना, मुझे मूर्ख नहीं बनाता।”
― Small Guide to Start Business: Learn Basics of Business
“साड़ी और सादगी का मिलन ही कुछ ऐसा होता है, अगर ये एक हो जाए तो उस मिलन की खूबसूरती से कोई नज़रे नहीं हटा सकता, क्यूंकि बिना दीदार किए चेहरे की चमक ही नहीं रचती ♾”
―
―
“Thoda Rukh sakti ho?
"Waqt nahi hai"
"Hamse udhar lelo"
"Chuka nahi paungi"
"Fir kabhi chuka dena "
"Kya hum phir milenge??"
"Haan hum phir milenge'
"Tab sab kuch kitna naya hoga na !"
"Hum purane hi rahenge
"Kyu"
"Purana sawal jo puchna hoga "
Konsa
"Thoda Rukh sakti ho
kya??”
―
"Waqt nahi hai"
"Hamse udhar lelo"
"Chuka nahi paungi"
"Fir kabhi chuka dena "
"Kya hum phir milenge??"
"Haan hum phir milenge'
"Tab sab kuch kitna naya hoga na !"
"Hum purane hi rahenge
"Kyu"
"Purana sawal jo puchna hoga "
Konsa
"Thoda Rukh sakti ho
kya??”
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“वे रोज मिलते थे। मतलब रोज एक जगह पर हो पाते थे। दिनभर में जब चाहें वे एक-दूसरे की आवाज सुन सकते थे। रात में भी। आखिर फोन के आविष्कार का मतलब क्या था। वे इतने सामने होते कि एक-दूसरे को पलकें झपका कर देख पाने और बगैर पलकें झपकने दिये देख लेने के सुख का भेद श्वेत-स्याह में पहचान सकते थे। उन्हें एक-दूसरे के बारे में सार्वजनिक और निजी की सीमा रेखा के आसपास वाली सारी बातें मालूम होनी चाहिए थीं। वे एक-दूसरे के बारे में सबसे प्रामाणिक बयान बन सकते थे। पर उन्होंने एक-दूसरे को रोकते-रोकते इतना रोक लिया था कि वे आपस में एक बुदबुदाहट भर हाजिरी ही बन पाये।”
― KHELA
― KHELA

“तुम अच्छी हो।'
'तुम अच्छे नहीं हो।'
'तुम फिर भी अच्छी हो।'
'तुम फिर भी अच्छे नहीं हो।'
'इससे क्या हुआ? तुम अच्छी हो।' उसने कहा।
'इससे बहुत कुछ हुआ। तुम भी अच्छे हो।' मैंने कहा।”
― परिन्दे का इन्तज़ार-सा कुछ / Parinde Ke Intzaar-Sa Kuchh
'तुम अच्छे नहीं हो।'
'तुम फिर भी अच्छी हो।'
'तुम फिर भी अच्छे नहीं हो।'
'इससे क्या हुआ? तुम अच्छी हो।' उसने कहा।
'इससे बहुत कुछ हुआ। तुम भी अच्छे हो।' मैंने कहा।”
― परिन्दे का इन्तज़ार-सा कुछ / Parinde Ke Intzaar-Sa Kuchh
“नमस्कार।
क्या आपने सोचा है कि हमारी असली मंजिल क्या है और वो कितनी दूर है?
वो है - अपने ऋण-अनुबंध, कौल-करार पूरे करते हुए, कर्तव्यों का पालन करते हुए - बोध प्राप्त करना, परमात्मा को अपने भीतर महसूस करना और पूर्णता को प्राप्त करना। और पहला कदम है – खुद को पहला कदम उठाने के लिये राजी करना। मंज़िल कोई भी क्यों न हो बस एक कदम की दूरी पर ही है।
कुदरती कानून है की जैसे जैसे हम पाखण्ड और क्षुद्रता को छोड़ते जाते हैं तथा अपने चिन्तन, चरित्र और प्रयासों को ऊँचा उठाते चले जाते हैं, वैसे वैसे मंज़िल पास आती चली जाती है। इसीलिये हर कदम सूझ-बूझ कर सही दिशा में उठाना और हर पल होश से जीना प्रार्थना है।
प्रभु से प्रार्थना है कि आपको उनका अनुग्रह और उनके अनुग्रह से मंज़िल जल्द ही प्राप्त हो जाये। मंगल शुभकामनाएं।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।”
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क्या आपने सोचा है कि हमारी असली मंजिल क्या है और वो कितनी दूर है?
वो है - अपने ऋण-अनुबंध, कौल-करार पूरे करते हुए, कर्तव्यों का पालन करते हुए - बोध प्राप्त करना, परमात्मा को अपने भीतर महसूस करना और पूर्णता को प्राप्त करना। और पहला कदम है – खुद को पहला कदम उठाने के लिये राजी करना। मंज़िल कोई भी क्यों न हो बस एक कदम की दूरी पर ही है।
कुदरती कानून है की जैसे जैसे हम पाखण्ड और क्षुद्रता को छोड़ते जाते हैं तथा अपने चिन्तन, चरित्र और प्रयासों को ऊँचा उठाते चले जाते हैं, वैसे वैसे मंज़िल पास आती चली जाती है। इसीलिये हर कदम सूझ-बूझ कर सही दिशा में उठाना और हर पल होश से जीना प्रार्थना है।
प्रभु से प्रार्थना है कि आपको उनका अनुग्रह और उनके अनुग्रह से मंज़िल जल्द ही प्राप्त हो जाये। मंगल शुभकामनाएं।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।”
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“दोस्तों, यह सच है कि समझाने से लोग नहीं समझते, क्योंकि अगर समझ पाते तो बांसुरी बजाने वाले श्री कृष्ण कभी महाभारत नहीं होने देते। लेकिन फिर भी समझने और समझाने का प्रयास निरंतर जारी रखना चाहिए।
हम सब अपने मान-सम्मान, धन-दौलत का ध्यान रखते हैं। रखना भी चाहिये। लेकिन क्या हम उस रामतत्व का ध्यान रखते हैं जो जन्म से ही हमारे अंदर छुपा है? इस रामतत्व को विकसित न कर पाना अज्ञानता है, परंतु उसे अपने हाथों नष्ट करना तो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
कोई बात नही की आप इस जन्म में पुण्य कर्मों के बल को आगे के लिये संचित नही कर पाते हैं, लेकिन ये क्या की संचित जन्मों से संचित पुण्य कर्मों को भी इस जन्म में खत्म कर दें.. ये तो कोई समझदारी की बात नही हुई ।
इसीलिये हर कदम संभल कर चलना, सावधानी से चलना ही प्रार्थना है।
प्रभु से प्रार्थना है कि आप शुभ कर्म करते हुए, अपने रामतत्व का पोषण करते हुए और अपने आराध्य पर विश्वास रखते हुए अपनी दिव्य सम्भावनाओं को जल्दी साकार कर लें।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।”
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हम सब अपने मान-सम्मान, धन-दौलत का ध्यान रखते हैं। रखना भी चाहिये। लेकिन क्या हम उस रामतत्व का ध्यान रखते हैं जो जन्म से ही हमारे अंदर छुपा है? इस रामतत्व को विकसित न कर पाना अज्ञानता है, परंतु उसे अपने हाथों नष्ट करना तो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
कोई बात नही की आप इस जन्म में पुण्य कर्मों के बल को आगे के लिये संचित नही कर पाते हैं, लेकिन ये क्या की संचित जन्मों से संचित पुण्य कर्मों को भी इस जन्म में खत्म कर दें.. ये तो कोई समझदारी की बात नही हुई ।
इसीलिये हर कदम संभल कर चलना, सावधानी से चलना ही प्रार्थना है।
प्रभु से प्रार्थना है कि आप शुभ कर्म करते हुए, अपने रामतत्व का पोषण करते हुए और अपने आराध्य पर विश्वास रखते हुए अपनी दिव्य सम्भावनाओं को जल्दी साकार कर लें।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।”
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“सब अपने रास्ते चल रहे हैं अपनी अपनी मंजिल की ओर - कुछ जा रहे हैं नरक की ओर तथा कुछ स्वर्ग की ओर।
लेकिन आज के लेख में यह स्वर्ग और नर्क कोई आसमान में स्थित स्थान नहीं है बल्कि यही जगत है जिसमें हम रहते हैं जो हमारी सोच और कर्मों का प्रतिबिंब है।
ये सच है कि जन्म से हमारी प्रकृति और स्वभाव अलग अलग है। लेकिन जैसे बबूल, बबूल ही रहेगा और आम, आम ही रहेगा…. ये बात हम पर लागू नही होती है। हम बबूल हो कर भी आम के गुण और स्वभाव धारण कर सब कुछ पल भर में बदल सकते हैं।
इसीलिए आज प्रभु से प्रार्थना है कि आपको अज्ञानता का आभास हो जाये और आपके भाव, स्वभाव और कार्य करने का ढंग और दृष्टिकोण बदल जाये जिससे आप इसी शरीर से इसी संसार मे रहते हुए देव पद प्राप्त कर स्वर्ग जैसे आनंद को प्राप्त कर सकें। मंगल शुभकामनाएं।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।”
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लेकिन आज के लेख में यह स्वर्ग और नर्क कोई आसमान में स्थित स्थान नहीं है बल्कि यही जगत है जिसमें हम रहते हैं जो हमारी सोच और कर्मों का प्रतिबिंब है।
ये सच है कि जन्म से हमारी प्रकृति और स्वभाव अलग अलग है। लेकिन जैसे बबूल, बबूल ही रहेगा और आम, आम ही रहेगा…. ये बात हम पर लागू नही होती है। हम बबूल हो कर भी आम के गुण और स्वभाव धारण कर सब कुछ पल भर में बदल सकते हैं।
इसीलिए आज प्रभु से प्रार्थना है कि आपको अज्ञानता का आभास हो जाये और आपके भाव, स्वभाव और कार्य करने का ढंग और दृष्टिकोण बदल जाये जिससे आप इसी शरीर से इसी संसार मे रहते हुए देव पद प्राप्त कर स्वर्ग जैसे आनंद को प्राप्त कर सकें। मंगल शुभकामनाएं।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।”
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“राम राम मित्रों, आज मैं सतयुग और कलयुग के बीच के अंतर को देख रहा था। मैंने ये पाया कि यह अंतर केवल युगों (समय) का नहीं, बल्कि हमारी सोच, वचन, कर्म, स्वधर्म का ज्ञान और पालन तथा सबसे महत्वपूर्ण – बोध का अंतर है।
मुझे लगता है कि उदर-भरण और परिवार का पालन-पोषण तो जीवन का लक्ष्य हमेशा से ही रहा है। तलब के तकाजे भी हर समय पर थे। मोक्ष, मान-सम्मान, धन – ये सभी इच्छाएं सदैव से मनुष्यों के मन में रही ही हैं। लेकिन सतयुग और कलयुग में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीकों में भिन्नता है। सतयुग में, शुभकर्म, मेहनत, वचन पालन और स्वधर्म पर बल दिया जाता था, जबकि कलयुग में क्षुद्रता, नीचता और अधर्म भी अपना रास्ता बना लेती है।
इसीलिए मेरा मानना है कि इस बोध से पहले का समय कलयुग है और इस बोध के बाद का समय सतयुग है।
बस यही बोध प्राप्त करने का सतत प्रयास हमारी प्रार्थना है।
प्रभु से प्रार्थना है कि उनकी कृपा से न केवल आपको जल्द ही बोध प्राप्त हो जाये, बल्कि आपके आस पास का ऊर्जाक्षेत्र और बोद्धक्षेत्र भी लगातार बड़ा होता जाए जिससे न केवल आप अपने जीवन में खुशी और समृद्धि प्राप्त कर पायें, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी वरदान बन जायें।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।”
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मुझे लगता है कि उदर-भरण और परिवार का पालन-पोषण तो जीवन का लक्ष्य हमेशा से ही रहा है। तलब के तकाजे भी हर समय पर थे। मोक्ष, मान-सम्मान, धन – ये सभी इच्छाएं सदैव से मनुष्यों के मन में रही ही हैं। लेकिन सतयुग और कलयुग में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीकों में भिन्नता है। सतयुग में, शुभकर्म, मेहनत, वचन पालन और स्वधर्म पर बल दिया जाता था, जबकि कलयुग में क्षुद्रता, नीचता और अधर्म भी अपना रास्ता बना लेती है।
इसीलिए मेरा मानना है कि इस बोध से पहले का समय कलयुग है और इस बोध के बाद का समय सतयुग है।
बस यही बोध प्राप्त करने का सतत प्रयास हमारी प्रार्थना है।
प्रभु से प्रार्थना है कि उनकी कृपा से न केवल आपको जल्द ही बोध प्राप्त हो जाये, बल्कि आपके आस पास का ऊर्जाक्षेत्र और बोद्धक्षेत्र भी लगातार बड़ा होता जाए जिससे न केवल आप अपने जीवन में खुशी और समृद्धि प्राप्त कर पायें, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी वरदान बन जायें।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।”
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“क्षणिक आकर्षण शास्वत प्रेम को परिभाषित नहीं करता,
किसी की खुशियों और ग़मों के साथ एकाकार हो जाना हीं तो प्रेम है।”
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किसी की खुशियों और ग़मों के साथ एकाकार हो जाना हीं तो प्रेम है।”
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“Top Quotes from ‘Love Ends Peacefully'
Chapter 1: इनोसेंस से इश्क़ तक
"जिसे बचपन में माँ की ममता न मिले, वो पूरी उम्र उसे तलाशता रहता है — कभी रिश्तों में, कभी मोहब्बत में।"
"ज़िंदगी जब सवाल बन जाए, तो जवाब अक्सर किसी मुस्कान में छिपा होता है।"
"पहली बार किसी की आँखों में देखा था — और खुद को खो देने का मन किया था।”
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Chapter 1: इनोसेंस से इश्क़ तक
"जिसे बचपन में माँ की ममता न मिले, वो पूरी उम्र उसे तलाशता रहता है — कभी रिश्तों में, कभी मोहब्बत में।"
"ज़िंदगी जब सवाल बन जाए, तो जवाब अक्सर किसी मुस्कान में छिपा होता है।"
"पहली बार किसी की आँखों में देखा था — और खुद को खो देने का मन किया था।”
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