Raj Sharma's Blog
July 13, 2025
सावण सायरी
September 13, 2024
आजादी
मैं ऄक दुकनदार रै सागै सागै अेक छोटो सो लेखक बी हूं। इण लेखक रै गुण नै कदी कदी दुनियां मांय होवण वाळी क्रियावां माथै लिखण खातर बारै काढ़ लिया करूं। मैं जद घर सूं निसरुं तो म्हारै सागै म्हारै मन री जकी कल्पना है वा बी बरोबर निसरै।चलतो फिरतौ जग मांय अर कुदरत सूं होवण वाळी घटनावां माथै निजर राख'र मन ई मन मांय कीं न कीं रचाव करतो रेऊं।हुवै जठै तांई मैं रचाव नै छोटो सो रूप दिया करूं पण कदी कदी मन मांय अेक चीज नै या कोई चितराम नै लेय'र घणी सारी बातां उमटै जद बीं नै लेख रो रूप दे दिया करूं।ओ जको आज रो रचाव है वो है आजादी माथै! कांई हुवै आ अजादी? जकी मांय कोई बी मिनख खुद री मन मरजी सूं सांस ले सकै फिर घूम सकै,चावै जको काज कर सकै। आज आपां मिनखां नै आ सगळी आजादी है, पण सोचो १९४७ सूं पैली रा आपणा बडेरां नै आ मिली कांई? सोच'र देखौ उणारी हालत रै बारै मांय! वे इण सागी सुतंतरता खातर भौत ताफड़ा तोड्या हा जण जा'र आ आजादी बां लोगां सूं बेसी आपां नै मिली।पण आपां उणरौ कांई फायदो उठा रह्या हां? खुद रा सौक पूरा कर लेवां मन चायो काज करां,फिरां आद। बां सौक मांय आ कोनी देखां कै आपणै कारण कोई दूजै री आजादी मोसीज रैयी है। घर नै,खुद रै व्यक्तित्व नै कुदरत प्रेमी अर आधुनिक बतावण रै चक्कर मांय छोटा छोटा पंछियां नै घरां मांय कैद कर'र राखां अर इयां सोचां कै इण सूं घर री सौभ्या बधै।जग नै अर घरै आवण वाळा बटाऊवां नै आ बतावण री कोसिस करां कै म्है दयालु हां अर आं पंछियां री घणी सेवा चाकरी करां। खुद नै जीव प्रेमी बी बतावां पण पिंजरै मांय बंद वो पंछी ई जाणै कै थे किताक जीव प्रेमी हो। अर बीं री आत्मा ई जाणै कै वो थारी सेवा सूं कितोक सोरो अर सुखी है इण बंदिस मांय।सोच‘र देखौ जे पंछियां री जग्यां मिनखां नै इयां इज जेळ मांय कैद कर'र चौखी खातिरदारी अर दुनियां रा चौखा चौखा पकवान जीमावै तो जीम सकैलो? इणरौ पडूतर है ना! क्यूं कै खुद री छात चाहै कित्ती बी टूटेड़ी हुवौ बठै री रोटी इमरत समान है अर कैद रा छप्पन भोग बी जैर हुवै।खुद रै घर रो चूण अर आभै री खुली हवा सगळा नै इज चौखी लागै क्यूं कै वा आजादी रो इमरत है।कैद मांय बंद उण पंछी रो जीव बी करै कै मैं म्हारै पांखड़ा नै पसरा'र खुलै आभ री सैर करुं,नाचूं,गाऊं। पण आपां उणरी पीड़ क्यूं कोनी समझ रह्या ? अरे मिनखो जीव नै जी’ण देवौ इण कुदरत नै बणावण मै अर अवेर राखण मै बां सगळा जीवां रो योगदान है जितो मिनख कदी कोनी कर सकै।
मैं ऄक दुकानदार अर लेखक होवण रै नाते बां सगळा दुकनदारां सूं अरज करुं जका पंछियां री खरीद बिक्री करै!भाई रै ऄड़ो बोपार नहीं करणो जिण सूं कोई रो अंतस जीव आपां नै दुरासीस देवै अर गाळ काढै।
पंछियां री आवाज
पांख दीन्हा परमातमा
म्हारी आभै बसै छै आतमा,
रे मिनख थूं क्यूं बेरी हुयो
म्हारै अंतस नै मोस दियो
म्है थारा घर बार न कोस्या
पण थे म्हारा क्यूं कोस रह्या
म्हारौ जीव बी आजादी चावै
सोचो!इण पिंजरै मै किया रेवै
थोड़ी घणी तो दया करल्यो
अबै म्हानै बी सुतंतर कर द्यो।
June 3, 2024
राजस्थानी कविता
दिखावटी प्रेम
दिखावट रै इण दौर मांयम्हारी आस,सपना न्यारा है
जगत री बात ई ना करौ,
सब लंफै चांद सितारा है,
मैं आं सब सूं दूर एकलो
सांची प्रीत रो हमराही हूं
कोई मनै जाण सकै तो,
मैं पवन प्रेम री गहराई हूं।
May 15, 2024
मां
मैं मां पर लिखण मै मोड़ो कर दीन्हो,
म्हारै कनै सबद भी कोनी हा,
क्यूं कै मैं म्हारी मां नै दैखी कोनी,
वा किसीक ही,कैड़ौ सुभाव हो,
पण मैं जगत री ओर मां'वा नै देखूं,
अर सोचूं,
मां किसी भी जूणी मांय हुवै,
बीं रो सुभाव,प्रेम अर बुचकारणो,
सगळै ऄकसो ई हुवै !
February 21, 2024
मजदूरी मजदुर
दिहाड़ी वाळो जद घर सूं निसरै,
खुद रा,माईता रा सपना सागै
आखै दिन सुरजी तळै तपै
परिवार सुख री आस मांय
सैंस मिनखां री बात सुणे
जण जा'र आ दिहाड़ी मिळै
पण जगत रा अधकिचरा धनी
मजूर री मजूरी री तौहीण करै
रिस्तेदार बी रिस्तेदारी छोडो
बतळावै तो लिलाड़ सळ भरै
मजदूर च्यारां कानी सूं दबेल है
अमीरां री अमीरी रो खेल है
गरीब नै कुण कद साख देवै
दिहाड़ीयो हमेस पिसतो रेवै
मिनखां री आ मानसिकता
समाज मांय दू भांत भर देवै
मजूरियो हमेस ऄकलो रेवै।
पवनकुमार राजपुरोहित
February 17, 2024
करणी माता भजन देशनोक दरबार
तू बौपार वणज चलावैमेहाई ई पुरै अन्न पाणीदास रै सिर हाथ राखैमां काबां वाळी किनियाणी...
दूर देसावर बैठ्यां हांथारै भरोसै माताराणीदीन दुखी री बात सुणौमां काबां वाळी किनियाणी...
थारी किरत पवन मांडीतू सिखाई कलाम चलाणीनित उठ मैं थारौ नांव रटूंमां काबां वाळी किनियाणी...
©पवन कुमार राजपुरोहित
February 16, 2024
होली पर राजस्थानी कविता
होळी गीत 'धमाळ'
सैर मै बैठ्या गांव उडीकै,
कार-बार नहीं छोड़ उठिजै।
अंतस फागण हिलोर उठावै,
चंग धमीड़ा री याद दिरावै।
बेली भायलां नै फोन मिलावै,
केवै,अबकै होळी जोर बतावै।
गांव रो जनसंघ खाटू जासी,
श्याम धणी रै धोक लगासी।
चालौ साथीड़ा गांव चालस्यां,
काम-काज नै फैर दैखस्यां।
पचरंग बसंत री मौज लूटस्यां,
चंग,गुलाल अर गैर खेलस्यां।
©पवनकुमार राजपुरोहित
February 14, 2024
बेटा और बेटी
बेटी बडी हुवै तो,
घर गा नै चिंत्या हु ज्यावै।
बेटो बडो हुवै जद,
वींनै घर गी चिंत्या सतावै।।
इयां मत जाणो कै,
फगत बेटी ई घर बसावै।
बेटो घर सामणनै,
जग्यां जग्यां धक्का खावै।।
बेटी रै सासरो बी,
खुद रो घर सो बण जावै।।
पण लाडेसर बेट नै,
वो घर रोजीनां याद आवै।।
सैंस मुंडा सैंस बातां,
ओ जग झूटा भाटा भिड़ावै।
बेटो कम न बेटी कम,
कलम पवन री साच बतावै।
©पवनकुमार राजपुरोहित
February 12, 2024
राजस्थानी कविता !!गांव नै गांव रैवण द्यो!!
https://youtu.be/5uFogTjK5Ck?si=3hO0xNq1ewSjo8EU
सैरां सूं लाख भली म्हारी पैचाण रैवण द्यो
उभी बाड़ रै नेड़ै हथाई वाळी ठौड़ रैवण द्यो।
गंगाजळ सो मिठो पाणी सरवर री पाळ रैवण द्यो
गुवाड़ बिचाळै डांगरां री वा घमसाण रैवण द्यो।
गळी री रेत मांय खोजां री पिछाण रैवण द्यो
सुखाण मांय थेपड़ियां री थरपाण रैवण द्यो।
करमा बाई रै खीचड़ळै मांय धोळी धार रैवण द्यो
ऊभो जीमणो छोड़'र बाजोट री सतकार रैवण द्यो।
दिवाळी रा दिया अर होळी री पिचकार रैवण द्यो
आखातीज,गणगौर,भादवै रा तीज तिंवार रैवण द्यो।
मिंदर मै झांझरगै झालर री झणकार रैवण द्यो
मिनखपणै रो सुभाव जीवां माथै उपकार रैवण द्यो।
हीय मै प्रेम अर भेळो भायां रो कड़ुमो रैवण द्यो
कलम पवन री कैवै अजी गांव नै गांव रैवण द्यो।
.पवनकुमार राजपुरोहित
https://youtu.be/5uFogTjK5Ck?si=3hO0xNq1ewSjo8EU<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1781997236664824" crossorigin="anonymous"></script>थूं बदळबा लागगी
थारै भोळ स चेहरे माथै
भरोसे री टेर लगाया करतो
पण मनै ठा कोनी हो कै
समय अर घड़ी ऄड़ी आगी
होळै होळै थूं बदळबा लागगी!
तनै राजी राखण खातर मैं
झूटी बातां रा हुंकारा भरतो
थूं जठै ऄकली चाल पड़ती
बठै मेर थारै बिन्या न सरतो
पण हिड़दै रै बिस्वास नै थूं
अब कुचर कुचर ही खायगी
होळै होळै थूं बदळबा लागगी
©पवनकुमार राजपुरोहित


